Teacher’s Day: शिक्षकों ने बदली जिंदगी… ताउम्र रहेंगे याद, सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं, नैतिक मूल्य भी सिखाए

शिक्षक मार्गदर्शक हैं। न सिर्फ शिक्षा देते हैं, बल्कि जीवन की सीख भी देते हैं। शिक्षकों की सीख ने अनगिनत लोगों की जिंदगी संवारी है। इस बार शिक्षक दिवस के अवसर पर लोगों से उनके शिक्षकों को लेकर अनुभव मांगे गए थे। काफी लोगों ने अनुभव भेजे, जिनमें से चुनी गईं कुछ लोगों की कहानियां प्रकाशित कर रहे हैं…

प्रधानाचार्य नहीं होते तो स्कूल से नाम कट जाता
मैं अरुण कुमार जागृति विहार में रहता हूं। जीएसटी विभाग में वरिष्ठ सहायक हूं। अगर कक्षा नौ में मेरे प्रधानाचार्य डॉ. डालचंद वर्मा न होते तो शायद तभी मेरी पढ़ाई खत्म हो गई थी। मैं आगे पढ़ नहीं पाता। बात लगभग 23 साल पुरानी है। उस वक्त मैं राम सहाय इंटर कॉलेज में कक्षा नौ में पढ़ रहा था। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। सड़क दुर्घटना में पिता के पैर में फ्रैक्चर था। पेट में समस्या होने के कारण माता का ऑपरेशन होना था। उस समय स्कूल फीस जो छह माह में एक बार ली जाती थी, मेरे परिजन उसे दे नहीं पा रहे थे। नौबत नाम काटने की आ गई। बात उस वक्त के प्रधानाचार्य डॉ. डालचंद वर्मा तक पहुंची, जो सख्त अनुशासन, ईमानदारी एवं कर्तव्यनिष्ठा के लिए जाने जाते थे। मुझे बुलाया गया। डर से दिल की धड़कन तेज थी। शरीर कांप रहा था। फीस जमा न करने की वजह पूछी गई। मैंने बताया। प्रधानाचार्य ने खुद से मेरी फीस जमा की। मरते दम तक मैं उनका आभारी रहूंगा।

टीचर की डांट ने बनाया रोवर रेंजर
मैं सलोनी कश्यप मानसरोवर की रहने वाली हूं। मेरी इतिहास की शिक्षिका उपासना वर्मा ने न सिर्फ पढ़ाती थीं, बल्कि जीवन मूल्य भी सिखाती थीं। लेकिन जब होमवर्क नहीं करते थे तो डांटती थीं। उनकी डांट से प्रेरणा मिली और आज मैं एक बेस्ट स्टूडेंट हूं। उन्हीं ने मुझे स्काउट गाइड के बारे में सिखाया और मैं मेरठ कॉलेज के स्काउट गाइड में रोवर रेंजर हूं। मैं उनका सच्चे दिल से धन्यवाद करती हूं। उनके लिए चार पक्तियां कहती हूं, गुरु बिन ज्ञान कहां, उसके ज्ञान का आदि न अंत यहां, गुरु ने दी शिक्षा जहां, उठी शिष्टाचार की मूरत वहां।

सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं नैतिक मूल्य सिखाए
मैं एम बिलाल मंसूरी मवाना का रहने वाला हूं। दिव्यांग हूं और दिव्यागों के आधिकारों और उत्थान के लिए करता हूं। सरकारी योजना, नौकरी और लाभदायक सूचनाओं को लोगों तक पहुंचाता हूं। मैं डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय लखनऊ से परास्नातक कर रहा हूं। मैं ग्रेजुएशन के आखिरी साल में था।
मैंने इस यूनिवर्सिटी में एडमिशन के लिए आवेदन किया था। यहां मेरिट के आधार पर प्रवेश होना था, लेकिन तब तक मेरा रिजल्ट नहीं आया था। मैं परेशान था। मेरे विभाग की कॉर्डिनेटर डॉ अर्चना सिंह ने मेरी समस्या समझी। मुझे लखनऊ बुला लिया और मेरा एडमिशन कराया। विश्व की बड़ी संस्था यूनिसेफ में प्रोजेक्ट से जोड़ा। उन्होंने मुझे सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि नैतिक मूल्य भी सिखाए।

हम शिक्षक दिवस क्यों मनाते हैं?
हम एक असाधारण व्यक्ति, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के उपलक्ष्य में शिक्षक दिवस मनाते हैं, जो एक प्रतिष्ठित विद्वान और दार्शनिक थे और भारत के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में कार्यरत थे। शिक्षा और दर्शन के क्षेत्र में डॉ. राधाकृष्णन की विरासत बहुत बड़ी है। उनका दृढ़ विश्वास था कि ज्ञान व्यक्ति और समाज दोनों के लिए प्रगति का मार्ग प्रशस्त करता है।

उल्लेखनीय रूप से, डॉ. राधाकृष्णन की विनम्रता उनकी बुद्धिमत्ता से मेल खाती थी। जब उनके छात्रों ने उनका जन्मदिन मनाने का प्रस्ताव रखा, तो उन्होंने बहुत विनम्रता दिखाई। अपने जीवन के उत्सव की वकालत करने के बजाय, उन्होंने सुझाव दिया कि यह दिन शिक्षकों के सम्मान के लिए समर्पित होना चाहिए। ये अक्सर गुमनाम नायक निस्वार्थ रूप से अनगिनत युवा दिमागों को ज्ञान और बुद्धि प्रदान करते हैं। इस आत्म-विनम्र कार्य ने उनके जन्मदिन को शिक्षकों के सम्मान के लिए समर्पित दिन में बदल दिया।

शिक्षक दिवस हमें याद दिलाता है कि हमारे देश का भविष्य आज के बच्चों के कंधों पर टिका है, जो कल के नागरिक हैं। शिक्षक इन युवा दिमागों को आकार देने, मार्गदर्शन प्रदान करने और उनकी सफलता में महत्वपूर्ण योगदान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये गहन कारण शिक्षक दिवस के वार्षिक उत्सव को रेखांकित करते हैं।

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