पत्नी से मिलोगे तो मरोगे…राजा सुदास को किसने दिया यह श्राप, सिकंदर का रास्ता रोकने वाले महाराष्ट्र के पराक्रमी अश्मकों की कहानी

कुछ ही लोग होंगे, जो शायद अश्मकों के बारे में जानते होंगे। यह दक्षिणापथ की एक कबायली जाति थी, जिसे संस्कृत साहित्य में ‘अश्मक’ कहा गया। अश्मकों का निवास गोदावरी नदी के किनारे था। ‘पोतलि’ या ‘पोतन’ उनका मुख्य नगर था। बौद्ध धर्म के प्राचीन ग्रंथ ‘अंगुत्तरनिकाय’ के अनुसार, भगवान बुद्ध के समय अश्मकों का दक्षिण में ही निवास था। आम तौर पर यह स्थान महाराष्ट्र ही था। महाभारत के अनुसार, अश्मक 16 महाजनपदों में से एक था। टॉलेमी और प्लिनी जैसे ग्रीक इतिहासकारों के अनुसार, जब सिकंदर ने आक्रमण किया तो उस वक्त अश्मक पर अस्सकेनोई नाम की एक पराक्रमी कबायली जाति का राज था। वो इतने साहसी थे कि तेजी से हमला करते, जिससे दुश्मन के पैर उखड़ जाते थे। महाराष्ट्र की महागाथा के एपिसोड-1 में आज इन्हीं मराठवाड़ा के वीरों की कहानी जानते हैं।

20 हजार घोड़े और 300 हाथियों से डरकर भागी सिकंदर की आर्मी
इतिहासकार डॉ. दानपाल सिंह के अनुसार, महाजनपदों में से एक अश्मक महाजनपद का गौरवशाली अतीत रहा है। सिकंदर ने जब गोदावरी के पार आक्रमण किया तो उस समय वहां की अस्सकेनोई राजवंश के 20 हजार घुड़सवारों, 30 हजार पैदल सैना और 300 हाथियों ने उसका रास्ता रोक दिया। उनके पराक्रम और वीरता के आगे सिकंदर की सेनाएं पस्त हो गईं। ग्रीक इतिहासकारों ने जिस ‘दुर्ग मस्सग’ के अमर युद्ध का वर्णन किया है, वो अश्मकों के शौर्य की अमर कथा है।

तब अश्मक महाजनपद में शामिल थे आंध्र और तेलंगाना भी
अश्मक या अस्सक प्राचीन भारत में एक महाजनपद था जो बौद्ध ग्रंथों और पुराणों के अनुसार 700 ईसा पूर्व और 425 या 345 ईसा पूर्व के बीच वजूद में था। उस वक्त इसमें वर्तमान आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र के क्षेत्र शामिल थे। गौतम बुद्ध के समय में कई अस्सक गोदावरी नदी (विंध्य पर्वत के दक्षिण) के तट पर स्थित थे। इसकी राजधानी को पोतलि या पोतन कहा जाता है। इसकी पहचान वर्तमान तेलंगाना में बोधन के रूप में की जाती है।

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