पाकिस्तान के बलूचिस्तान में एक महिला कार्यकर्ता ने सरकार की नाक में दम कर रखा है। अंहिसा के सिद्धांत पर आंदोलन चलाने वाली महरंग बलोच की लोकप्रियता पूरे प्रदेश में तेजी से बढ़ रही है। बड़ी संख्या में लोग उनकी रैलियों में आते हैं। महरंग बलोच लोगों के उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलन चला रही हैं। आइए पढ़ते हैं पेशे से डॉक्टर महरंग की कहानी…
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 1948 से पाकिस्तान सरकार के खिलाफ बलूचिस्तान में शुरू हुआ प्रतिरोध इन दिनों चरम पर है। बलूचिस्तान लिबरेशन फोर्स (BLA) पूरी ताकत के साथ पाकिस्तानी फौज को निशाना बना रही है। एक तरफ जहां बीएलए के हमलों ने पाकिस्तान की शहबाज सरकार की चिंता बढ़ा दी तो वहीं 31 वर्षीय बलूची महिला महरंग बलोच ने नाक में दम कर दिया है। महरंग बलोच अंहिसा के साथ आंदोलन को बढ़ाने में विश्वास रखती हैं।
महरंग को दुनियाभर में मिल रही पहचान
महरंग ने गांधीवादी तरीके से लोगों को एकजुट करते हुए दुनियाबर में सम्मान और प्रशंसा अर्जित की है। पाकिस्तान के सबसे रूढ़िवादी माने जाने वाले बलूचिस्तान की महिला होते हुए भी वह बलूच लोगों को ना सिर्फ एकजुट किया बल्कि महिलाओं को भी सड़कों पर उतरने के लिए प्रोत्साहित किया है। महरंग कहते हैं, ‘मेरे लिए हमारे विरोध कासबसे प्रगतिशील पहलू यह है कि युवा किशोर लड़कियों से लेकर उनकी माताओं और मौसियों से लेकर उनकी दादी और परदादी तक हजारों महिलाएं इस आंदोलन में शामिल हुई हैं।’
महरंग ने बीते महीने ने बलूचिस्तान में शहर ग्वादर में बलूच लोगों के उत्पीड़न के बारे में बात करने के लिए सभा बुलाई तो सुरक्षा बलों ने बलपूर्वक लोगों को वापस लौटने पर मजबूर कर दिया और शहर में किसी को भी प्रवेश करने से रोकने के लिए सड़क अवरोध बनाए। इतना ही नहीं इंटरनेट भी बंद कर दिए गए। इसके बावजूद महरंग ने डटकर हालात का सामना किया। इसमें सबसे खास बात ये रही कि सिरेफ जातीय बलोच ही बैठक में नहीं गए थे। बलोच महिला सारा बताती हैं कि उनके पंजाबी पड़ोसी उनको बिस्किट और बोतलबंद पानी देकर जाते थे, क्योंकि अधिकारियों ने ग्वादर में पानी की आपूर्ति को रोक दिया था। कई महिलाएं अपने घरों से पका हुआ खाना लेकर आईं। महरंग के बारे में वह कहती हैं कि मैंने पहले कभी किसी नेता के प्रति इतनी इज्जत और प्रशंसा का भाव नहीं देखा।’
महरंग कहती हैं, ‘2003 से अब तक 50,000 बलूचों का अपहरण किया गया है और 25,000 लोगों की गैर-न्यायिक तरीके से हत्या की गई है। ये बहुत ही मोटे आंकड़े हैं और इससे भी अधिक हो सकते हैं क्योंकि डेटा एकत्र करना भी खतरनाक हो गया है। सरकार हर तरह की ज्यादती कर रही है और पिछले 15 सालों में अपने करीबी लोगों के दर्जनों शव देखे हैं। मौत अब मुझे डराती नहीं है, मैं लड़ रही हूं और अपनी लड़ाई को अहिंसात्मक तरीके से जारी रखूंगी।’